14 साल बाद पूरा हो रहा भारत का मिशन मून का ख्वाब,अब्दुल कलाम ने ISRO को दी थी ये सलाह
चंद्रयान-3 मिशन के कारण भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम और अन्य चंद्र मिशनों को लेकर काफी चर्चा हो रही है।भारत का पहला चंद्र मिशन, चंद्रयान-1 साल 2008 में लॉन्च किया गया था। उस समय सिर्फ एक ऑर्बिटर था, जिसे चंद्रमा पर भेजा जाना था।जब मिशन की तैयारी चल रही थी, तब तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) कार्यालय का दौरा किया था।
अब्दुल कलाम ने ISRO को दी थी ये सलाह
22 अक्टूबर 2008 को भारत ने चंद्रयान-1 मिशन लॉन्च किया था, साल 2009 में इससे पहला सबूत मिला था. वो भारत का चंद्रयान-1 ही था, जिसने चांद पर पानी होने की पुष्टि की थी और दुनिया को एक नया रास्ता दिखाया था. भारत के पहले मिशन चंद्रयान-1 में स्वदेशी उपकरणों के अलावा अन्य देशों के उपकरण भी शामिल थे, जो चांद के उत्तरी इलाके में जांच पड़ताल कर पाए. कुछ वक्त तक यह चांद की ऑर्बिट के 100 किमी. रेंज में घूमा और मिशन पूरा होने के बाद 200 किमी. रेंज में आ गया था.
चंद्रयान-1 मिशन से जुड़ी खास बात ये भी है कि पूर्व राष्ट्रपति और भारत के मिसाइल मैन कहे जाने वाले एपीजे अब्दुल कलाम की कोशिशों के बाद ही चंद्रयान-1 ने पानी खोजा था. पूर्व इसरो चेयरमैन जी. माधवन नायर के मुताबिक, जब कलाम ने मिशन से पहले वैज्ञानिकों से मुलाकात की थी तब उन्होंने सवाल किया था, आप चांद पर जाकर क्या साबित करेंगे. तब वैज्ञानिकों ने चांद के सर्फेस की तस्वीरें लेने की बात कही थी. इसपर कलाम ने कहा था कि आप मिशन में ऐसी चीज़ें जोड़ें जो चांद की सतह तक जाएं और कुछ बड़ा हासिल करें. इसी के बाद भारत ने चंद्रयान-1 के जरिए इतिहास रचा था.
चंद्रयान-1 लॉन्च करने वाली टीम में एम. अन्नादुरई, के. राधाकृष्णन, एस.के. शिवकुमार जैसे दिग्गज वैज्ञानिक शामिल थे, इसी टीम ने चांद पर पानी ढूंढने का इतिहास रचा था. अब करीब डेढ़ दशक के बाद चांद के दूसरे हिस्से में भारत पहुंचने की तैयारी में है और चंद्रयान-3 का मकसद भी पानी खोजना है, बस अंतर ये है कि पहले उत्तर क्षेत्र में कमाल हुआ था और अब बारी दक्षिणी हिस्से की है, यहां अभी तक कोई नहीं पहुंच पाया है.
ISRO ने डिजाइन में किया बदलाव
ISRO ने कलाम की सलाह पर ध्यान दिया और एक नए डिवाइस (मून इम्पैक्ट प्रोब) को यान के साथ अंतरिक्ष में भेजने लिए डिजाइन में बदलाव किया।यह मून इम्पैक्ट प्रोब 14, नवंबर 2008 को चंद्रयान-1 के ऑर्बिटर से अलग होकर चंद्रमा की सतह से टकराया और चंद्रमा पर पहुंचने वाला पहला भारतीय ऑब्जेक्ट बन गया।इसे चंद्रमा की सतह पर दुर्घटना होने से पहले वहां के वातावरण का अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया था।