Kaal Bhairav: कौन थे काल भैरव, कैसे हुई उनकी उत्पत्ति, कालाष्टमी के दिन क्यों होती है पूजा?
Kaal Bhairav: हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार हर महीने के 15 दिन कृष्ण पक्ष और 15 दिन शुक्ल पक्ष का होता है. पुराणों के अनुसार कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काला अष्टमी के नाम से जाना जाता है. इस दिन कालाष्टमी के व्रत का विधान है. शिवपुराण के अनुसार कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव प्रकट हुए थे. कालाष्टमी के दिन हुई थी शिव के अंश भैरव की उत्पत्ति.
कालभैरव को शक्तिशाली रुद्र बताया गया है. मान्यता है कि कालभैरव का व्रत रखने से साधकों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. साथ ही जादू-टोना, तंत्र-मंत्र का भय नहीं रहता है.
धर्म ग्रंथों के अनुसार काल भैरव भगवान शिव का ही रूप हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर भगवान शिव को काल भैरव का स्वरूप क्यों लेना पड़ा? आइए जानते हैं इससे जुड़ी प्रचलित कथा के बारे में.
Kaal Bhairav: कैसे हुई काल भैरव की उत्पत्ति?
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी के बीच इस बात पर बहस हुइ कि दोनों में से कौन श्रेष्ठ है? लेकिन जब इस बात का कोई हल नहीं निकला तो ब्रह्मा जी और विष्णु जी सभी देवताओं के साथ भगवान शिव के पास कैलाश पर्वत पर गए. वहां उन्होंने अपनी बहस के बारे में बताया और इसका समाधान मांगा.
जैसी ही भगवान शिव ने यह बात सुनी तो उनके शरीर से एक ज्योति निकली, जो आकाश और पाताल दोनों दिशा में गई. महादेव ने ब्रह्मा जी और विष्णु जी से कहा जो भी सबसे पहले इस ज्योति के अंतिम छोर पर पहुंचेगा, उसे ही सबसे श्रेष्ठ माना जाएगा.
दोनों अनंत ज्योति के छोर तक पहुंचने के लिए चल दिए. कुछ समय बाद जब ब्रह्मा जी और विष्णु जी वापस लौटे तो शिव जी ने पूछा कौन अंतिम छोर तक पहुंचा तो विष्णु जी ने तो सच बोला कि पहले वह वहां पहुंचे. लेकिन ब्रह्मा जी बोले कि पहले छोर मुझे मिला था.
भगवान शिव तुरंत समझ गए कि ब्रह्मा जी झूठ बोल रहे हैं और उन्होंने विष्णु जी को सर्वश्रेष्ठ घोषित कर दिया. ये बात सुनकर ब्रह्मा जी बेहद क्रोधित हुए और उन्होंने भोलेनाथ को अपशब्द कहना शुरू कर दिया.
अपशब्द सुनते ही शिवजी को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने रूप से भैरव का जन्म किया. भैरव क्रोधित थे उन्होंने क्रोध में आकर ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया जिसके बाद ब्रह्माजी के पास केवल 4 मुख रह गए.
भगवान शिव का यह रौद्र रूप देखकर सभी देवतागण घबरा गए. तब इस रूप को शांत करने के लिए ब्रह्माजी ने शिव जी से माफी मांगी और भगवान शिव का क्रोध शांत किया. भैरव के रूप का वर्णन किया जाए तो इनका वाहन काला कुत्ता और हाथ में छड़ी है.
Kaal Bhairav: कैसे करें काल भैरव की पूजा
कालाष्टमी के दिन भैरव देव की पूजा मुख्य रूप से रात के समय ही की जाती है क्योंकि भैरव को तांत्रिकों के देवता माना गया है. रात के समय भैरव देव की पूजा के साथ ही भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना भी की जानी चाहिए.
- इस दिन सबसे पहले सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करें, साफ़ कपड़े पहनें और उसके बाद भैरव देव की पूजा करें.
- इस दिन की पूजा में मुख्य रूप से भैरव देव को शमशान घाट से लायी गयी राख चढ़ाएं जानें का विधान है.
- काले कुत्ते को भैरव देव की सवारी माना गया है, ऐसे में कालाष्टमी के दिन भैरव देव के साथ ही काले कुत्ते की पूजा का विधान बताया गया है.
- पूजा के बाद काल भैरव की कथा कहने या सुनने से भी इंसान को लाभ मिलता है.
- इस दिन खासतौर से काल भैरव के मंत्र “ॐ काल भैरवाय नमः” का जाप करना भी फलदायी और बेहद शुभ माना जाता है.
- इसके साथ ही इस दिन माँ बंगलामुखी का अनुष्ठान भी करना बेहद शुभ माना गया है.
- इस दिन अपनी श्रद्धा और क्षमता के अनुसार गरीबों को अन्न और वस्त्र दान करने से पुण्य मिलता है.
- इसके अलावा अगर मुमकिन हो तो कालाष्टमी के दिन मंदिर में जाकर कालभैरव के समक्ष तेल का एक दीपक ज़रूर जलाएं.
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Kaal Bhairav: काल भैरव मंत्र
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:॥
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ॥