हो ही गया ललन का इस्तीफा, अब जेडायू की कमान नीतीश के हाथ

Political Analysis:हो ही गया ललन का इस्तीफा, अब जेडायू की कमान नीतीश के हाथ

Bihar: जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की विदाई हो गई है। अध्यक्ष पद से यह उनकी दूसरी विदाई है। इससे पहले 2010 में वह जदयू के प्रदेश अध्यक्ष पद से विदा होकर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए प्रचार करने लगे थे।

जानकारों का मानना है कि ललन सिंह के जाने से जदयू में बड़ा सियासी बदलाव आएगा। वहीं, नीतीश कुमार के अध्यक्ष बनने से उनका पूरी तरह से पार्टी पर नियंत्रण हो जाएगा। यह नियंत्रण अब प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देगा।जदयू की कमान संभालने पर नीतीश कुमार का कद और बढ़ जाएगा। एक तो वह बिहार के मुख्यमंत्री हैं। दूसरा वह अब जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाएंगे। ऐसे में प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक उनका कद बढ़ जाएगा।

जदयू का इतिहास क्या है?
जनता दल (यूनाइटेड) का गठन जनता दल, लोक शक्ति और समता पार्टी के के विलय के साथ हुआ था। 30 अक्तूबर 2003 को स्व. जॉर्ज फर्नांडीस और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली समता पार्टी का जनता दल में विलय हो गया। विलय की गई इकाई को जनता दल (यूनाइटेड) कहा गया। इसमें जनता दल का तीर चिन्ह और समता पार्टी का हरा और सफेद झंडा मिलकर जदयूका चुनाव चिन्ह बना।

2004 से 2016 तक शरद यादव पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष रहे हैं। वहीं, नितीश कुमार 2016 से 2020 तक इस पद पर रह चुके हैं। उनके बाद रामचंद्र प्रसाद सिंह 2020 से 2021 तक और उनके बाद ललन सिंह ने जिम्मेदारी संभाली। शुक्रवार को ललन ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया।

बिहार के अलावा अन्य राज्यों में कैसे रहा जदयू का प्रदर्शन? 
बिहार में जदयू 2005 से लगातार सरकार के रूप में प्रतिनिधित्व कर रही है। बिहार के अलावा जदयू झारखंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर ही ऐसे राज्य हैं जहां जदयू को कुछ सफलता मिलती रही है। झारखंड में 2005 में जदयू को छह सीटें मिली थीं। जो 2009 में घटकर दो रह गईं। 2014 और फिर 2019 में जदयू ने यहां 11 और 45 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन एक पर भी जीत नहीं मिली। अरुणाचल प्रदेश में 2019 विधानसभा चुनाव के दौरान 14 सीटों पर जदयू के प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था। इनमें सात पर पार्टी को जीत मिली। हालांकि, अब ये सभी भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इसी तरह मणिपुर में इस साल हुए चुनाव में 38 सीटों पर जदयू के प्रत्याशी मैदान में थे। इनमें से छह पर नीतीश कुमार की पार्टी को जीत मिली। बाद में इनमें से पांच विधायक भाजपा में शामिल हो गए।

पिछले चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन कैसा रहा है?
बीते कुछ विधानसभा चुनावों में जदयू के प्रत्याशी बिहार, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में जीतने में सफल रहे। बिहार में जदयू के 45 विधायक हैं। वहीं, अरुणाचल प्रदेश के सात और मणिपुर के पांच विधायक नीतीश कुमार की पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं। अब ये सभी भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं। मणिपुर में अब केवल एक विधायक जदयू के पास है। वहीं, अरुणाचल प्रदेश में जदयू का अब एक भी विधायक नहीं रह गया है।

जदयू की मौजूदा ताकत आंके तो वर्तमान में इसके लोकसभा में सदस्यों की संख्या 16 है। लोकसभा में जदयू के पार्टी के नेता के तौर पर मुंगेर के सांसद राजीव रंजन सिंह ‘ललन सिंह’ हैं। 5 सदस्य राज्यसभा में जदयू का प्रतिनिधित्व करते हैं। राज्यसभा में पार्टी नेता के तौर पर राम नाथ ठाकुर जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। राज्यसभा में उपसभापति के तौर पर 9 अगस्त 2018 से हरिवंश नारायण सिंह पदस्थ हैं। ये उनका दूसरा कार्यकाल है। वर्तमान में बिहार की विधानमंडल में विधानसभा सदस्यों की संख्या 45 और विधानपरिषद सदस्यों की संख्या 24 हैं। बिहार विधानमंडल दल के नेता नीतीश कुमार हैं।

ललन को क्यों छोड़ना पड़ा अध्यक्ष पद?
गुरुवार से दिल्ली में जदयू की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक हुई है। यह काफी दिन से लंबित थी। इसलिए आयोजन करने का फैसला लिया गया। लोकसभा चुनाव को लेकर यह बैठक हुई है। इसमें तय किया गया है कि ललन सिंह की जगह नीतीश कुमार पार्टी की कमान संभालेंगे।

सियासी जानकारों की मानें तो पार्टी नीतीश का चेहरा लेकर आगामी लोकसभा चुनाव में जाना चाहती है। वहीं, दूसरी ओर खुद ललन लोकसभा चुनाव में दावेदारी ठोक सकते हैं। उधर जो भी अध्यक्ष बने, उनके सामने जदयू-राजद के बीच फिलहाल समन्वय बनाना भी चुनौती होगी और इंडिया एलायंस में भागीदारी को मजबूती से लाते हुए वापस नीतीश कुमार को यहां चेहरा के रूप में लाने की अहम जिम्मेदारी होगी, जिसमें ललन सिंह फेल माने गए हैं।

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