Mirabai Jayanti 2024: पूरी जिंदगी कृष्ण भक्ति में लीन रही मीराबाई, ज्ञान और भक्ति का अदभुत समन्वय
Mirabai Jayanti 2024: भक्तिकाल की मीराबाई एक ऐसी संत रही, जिनका पूरा जीवन कृष्ण के लिए समर्पित था। यहां तक कि कृष्ण को ही वह अपना पति मान बैठी थीं। भक्ति की ऐसी चरम अवस्था कम ही देखने को मिलती है।
जोधपुर के राठौड़ रतनसिंह जी की इकलौती पुत्री मीराबाई का जन्म सोलहवीं शताब्दी में हुआ था। बचपन से ही वह कृष्ण-भक्ति में रम गई थीं। मीराबाई के बालमन में कृष्ण की ऐसी छवि बसी थी कि किशोरावस्था से लेकर मृत्यु तक उन्होंने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना।
Mirabai Jayanti 2024: बचपन से ही कृष्ण को मानती थीं अपना पति
मीराबाई के बचपन में एक ऐसी घटना हुई, जिसकी वजह से उनका कृष्ण-प्रेम अपनी चरम अवस्था तक पहुंचा। एक दिन उनके पड़ोस में किसी बड़े आदमी के यहां बारात आई। सभी औरतें छत पर खड़ी होकर बारात देख रही थीं। मीरा भी बारात देखने लगीं।
बारात को देख मीरा ने अपनी माता से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है? इस पर उनकी माता ने कृष्ण की मूर्ति की ओर इशारा कर के कह दिया कि यही तुम्हारे दूल्हा हैं। बस यह बात मीरा के बालमन में एक गांठ की तरह बंध गई।
Mirabai Jayanti 2024: महाराणा कुंभा से हुई थी शादी
बाद में मीराबाई की शादी महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज, जो आगे चलकर महाराणा कुंभा कहलाए, से कर दी गई। इस शादी के लिए मीराबाई तैयार नहीं थीं, लेकिन जोर देने पर उन्होंने शादी कर ली। शादी के बाद विदाई के समय वे कृष्ण की वही मूर्ति अपने साथ ले गईं, जिसे उनकी माता ने उनका दूल्हा बताया था।
Mirabai Jayanti 2024: ससुराल वालों ने नहीं स्वीकार किया उनके कृष्ण प्रेम को
कृष्ण के प्रति मीरा का प्रेम शुरुआत में बेहद निजी था, लेकिन बाद में कभी-कभी मीरा के मन में प्रेमानंद इतना उमड़ पड़ता था कि वह आम लोगों के सामने और धार्मिक उत्सवों में नाचने-गाने लगती थीं। वे रात में चुपचाप चित्तौड़ के किले से निकल जाती थीं और नगर में चल रहे सत्संग में हिस्सा लेती थीं।
पति की मौत के बाद मीरा का देवर विक्रमादित्य, जो चित्तौड़गढ़ का नया राजा बना, बहुत कठोर था। मीरा की भक्ति, उनका आम लोगों के साथ घुलना-मिलना और नारी-मर्यादा के प्रति उनकी लापरवाही का उसने कड़ा विरोध किया। उसने मीरा को मारने की कई बार कोशिश की। लेकिन हर बार उनकी कोशिशें, मीरा की कृष्ण भक्ति के आगे नहीं चली।
राणा का तैयार किया हुआ कांटो का बिस्तर भी मीरा के लिए फूलों का सेज बन गया जब मीरा उस पर सोने चलीं।
Mirabai Jayanti 2024: गुजरात के द्वारका में कृष्ण की मूर्ति में विलीन हो गईं थी मीराबाई
कहते हैं कि जीवनभर मीराबाई की भक्ति करने के कारण उनकी मृत्यु श्रीकृष्ण की भक्ति करते हुए ही हुई थीं। मान्यताओं के अनुसार वर्ष 1547 में द्वारका में वो कृष्ण भक्ति करते-करते श्रीकृष्ण की मूर्ति में समां गईं थी।
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मान्यता है कि मीरा पूर्व-जन्म में वृंदावन की एक गोपी थीं और उन दिनों वह राधा की सहेली थीं। वे मन ही मन भगवान श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। गोप से विवाह होने के बाद भी उनका लगाव श्रीकृष्ण के प्रति कम न हुआ और कृष्ण से मिलने की तड़प में ही उन्होंने प्राण त्याग दिए। बाद में उसी गोपी ने मीरा के रूप में जन्म लिया।