मां कात्यायनी सभी प्रकार की बाधाएं करती हैं दूर
नवरात्रि का छठा दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप को समर्पित है. इस दिन मां कात्यायनी के पूजन का प्रावधान है. इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थापित रहता है. इस दिन साधक को औलोकिक तेज की प्राप्ति होती है. माता षष्ठी देवी को भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री माना गया है और इन्हें ही छठ मैया कहते हैं. ऋषि कात्यायन के यहां जन्म लेने के कारण देवी मां को कात्यायनी के नाम से जाना जाता है. ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं, गोपियों ने कृष्ण की प्राप्ति के लिए इनकी ही पूजा की थी .
मां दुर्गा का ये स्वरूप अत्यन्त ही दिव्य है. इनका रंग सोने के समान चमकीला है, तो इनकी चार भुजाओं में से ऊपरी बायें हाथ में तलवार और निचले बायें हाथ में कमल का फूल है. इनका वाहन सिंह है. शास्त्रों के मुताबिक जो भी भक्त दुर्गा मां की छठी विभूति कात्यायनी की आराधना करते हैं मां की कृपा उन पर सदैव बनी रहती है. मां कात्यायनी की साधना का समय गोधूली काल है. इस समय सच्चे मन से मां की पूजा करने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं. मां कात्यायनी देवी के आशीर्वाद से विवाह के योग बनते हैं साथ ही वैवाहिक जीवन में भी खुशियां प्राप्त होती है.
मां दुर्गा का छठा अवतार देवी कात्यायनी हैं, नवरात्रि के छठे दिन कात्यायनी की पूजा की जाती है. इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थापित रहता है. ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं मां कात्यायनी, महिषासुर का वध करने वाली माता यही हैं. माता ने कात्यायन ऋषि के घर पुत्री के रूप में लिया जन्म ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण नाम कात्यायनी पड़ा है.
कैसा है मां कात्यायनी का स्वरूप?
मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है. मां कात्यायनी की चार भुजाएं हैं. माता के दायीं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है. माता के दायीं तरफ का नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है. मां के बांयी तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है. मां के बांयी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है. मां कात्यायनी का वाहन सिंह है.
मां कात्यायनी की पूजा से शत्रुओं पर विजय की प्राप्ति होती है. मां कात्यायनी की पूजा से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. मां कात्यायनी की पूजा से भक्तों में शक्ति का संचार होता है. मां कात्यायनी विवाह संबंधी बाधा दूर करती हैं.
मां कात्यायनी के मंत्र
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥