PNB घोटाले का असर, सरकारी बैंकों के लिए भारी पड़ सकते हैं अप्रैल-मई
नई दिल्ली: सरकारी बैंकों के लिए बुरी खबर है. पीएनबी घोटाले और फंसे कर्ज (एनपीए) के बोझ से उनकी कमाई घटने का अनुमान है. वैश्विक रेटिंग संस्था एसएंडपी ने आशंका जताई है कि वित्त वर्ष 2017-18 में बैंकों के राजस्व में कमी की आशंका है. वित्तीय अनुमान उतने अच्छे नहीं रहेंगे. गौरतलब है कि 31 मार्च को खत्म हुए वित्त वर्ष के लिए बैंकों ने अभी वित्तीय नतीजे घोषित नहीं किए हैं. एसएंडपी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बैंकों की वित्तीय स्थिति पर रिजर्व बैंक के सख्त प्रावधानों से नकारात्मक असर पड़ेगा. इससे बैंकों की रेटिंग में गिरावट आने के आसार हैं.
नए नियमों से होगी डिफॉल्टर की पहचान
एसएंडपी के क्रेडिट एनालिस्ट माइकल पुली ने ‘भारतीय बैंकों’ के वित्तीय नतीजों पर तैयार रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि फंसे कर्ज का प्रतिशत 15 फीसदी रहेगा जबकि वित्त वर्ष 2018 के पहली छमाही में यह 12.3 प्रतिशत पर था. पुली ने कहा कि हमारा मानना है कि केंद्रीय बैंक के नए नियमों से डिफॉल्टरों की जल्द पहचान होगी. साथ ही पीएनबी घोटाले जैसा मामला दोबारा नहीं होगा. इससे फायदा यह होगा कि फंसे कर्ज का प्रतिशत धीरे-धीरे कम होगा.
रिजर्व बैंक के सख्त प्रावधान बन रहे बाधा
पहले विजय माल्या और इसके बाद पीएनबी घोटाला सामने आने के बाद बैंकिंग उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है. 13 हजार करोड़ रुपए के इस घोटाले में आरोपित नीरव मोदी और मेहुल चोकसी देश से फरार हैं. इसके बाद ही केंद्रीय बैंक ने फंसे कर्ज के बढ़ते बोझ को कम करने के लिए फरवरी में कई सख्त प्रावधान किए. मसलन किस्त बाउंस होने पर एक दिन में ही उस लोन को राइट आफ कर देना, 50 करोड़ रुपए से बड़े लोन की गहन निगरानी और बढ़ते एनपीए की रिपोर्ट जल्द भेजने का प्रावधान किया है. इससे बैंकों को कॉरपोरेट को लोन बांटने में दिक्कत हो रही है.
नहीं बांटेगा कॉरपोरेट लोन
रिजर्व बैंक ने साफ कर दिया है कि बैंक बिना गहन जांच-पड़ताल के कॉरपोरेट को लोन नहीं बांटेंगे. केंद्रीय बैंक ने कॉरपोरेट को एलओयू जारी करने भी पाबंदी लगा रखी है. इससे निर्यातकों को सबसे ज्यादा दिक्कत हो रही है. केंद्रीय बैंक ने सरकारी बैंकों की लोन बांटने के प्रावधानों की दरख्वास्त नकार दी है. वित्त मंत्रालय ने भी आरबीआई से प्रावधानों में नरमी लाने को कहा था. लेकिन रिजर्व बैंक ने प्रावधानों में ढील देने से साफ इनकार कर दिया.
रिजर्व बैंक ने नहीं टाला सरकार का प्रस्ताव
डिप्टी गवर्नर एनएस विश्वनाथन ने एक कार्यक्रम में कहा कि बैंकों को एक दिन में लोन डिफॉल्ट की शर्त को चेतावनी के रूप में लेना चाहिए जिस पर कार्रवाई करने की जरूरत हो सकती है. उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक ने 12 फरवरी को डूबे कर्ज के निपटान के लिए एक संशोधित रूपरेखा पेश की थी. इसके तहत यदि ब्याज भुगतान में एक दिन भी देरी होती है तो बैंकों को उसका खुलासा करना होगा और 180 दिन के अंदर निपटान योजना पेश करनी होगी. तय समयसीमा में यदि बैंक समाधान नहीं ढूंढ पाता तो चूक करने वाले कंपनी का मामला बैंकरप्सी अदालत को भेजा जाएगा क्योंकि केंद्रीय बैंक ने ऋण निपटान की अन्य सभी व्यवस्थाएं खत्म कर दी हैं. हालांकि सरकार बैंकों की मांग पर एक दिन की चूक का खुलासा करने के नियम को 30 दिन करने के लिए दबाव बना रही थी.