रामलला को पहनाए गए हैं दिव्य आभूषण, धर्मग्रंथों से ली गई है मदद
Ayodhya:अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला अपने घर में विराजमन हो गए हैंं।अपने महा प्रासाद में भगवान श्री रामलला जी दिव्य आभूषणों और वस्त्रों से सज्ज होकर विराजमान हैं। इन दिव्य आभूषणों का निर्माण अध्यात्म रामायण, श्रीमद्वाल्मीकि रामायण, श्रीरामचरिमानस तथा आलवन्दार स्तोत्र के अध्ययन और उनमें वर्णित श्रीराम की शास्त्रसम्मत शोभा के अनुरूप शोध और अध्ययन के उपरान्त किया गया है। इस शोध के अनुरूप श्री यतींद्र मिश्र की परिकल्पना और निर्देशन से, इन आभूषणों का निर्माण श्री अंकुर आनन्द की संस्थान हरसहायमल श्यामलाल ज्वैलर्स, लखनऊ ने किया है। भगवान बनारसी वस्त्र की पीताम्बर धोती तथा लाल रंग के पटुके / अंगवस्त्रम में सुशोभित हैं। इन वस्त्रों पर शुद्ध स्वर्ण की ज़री और तारों से काम किया गया है, जिनमें वैष्णव मंगल चिन्ह- शंख, पद्म, चक्र और मयूर अंकित हैं। इन वस्त्रों का निर्माण श्री अयोध्या धाम में रहकर दिल्ली के वस्त्र सज्जाकार श्री मनीष त्रिपाठी ने किया है।
शास्त्रों में वर्णन के अनुसार पहने हैं आभूषण
अब बात करते हैं, उनके खास आभूषषों की, तो बता दें कि रामलला पौराणिक वर्णनों के अनुसार ही शीश पर मुकुट, गले में कंठा, हृदय में कौस्तुभमणि, वैजयन्ती या विजयमाल, कमर में कांची या करधनी पहन रखी है.उनके हर आभूषण की एक खासियत है.
शीष पर मुकुट या किरीटः यह उत्तर भारतीय परम्परा के अनुसार स्वर्ण निर्मित है, जिसमें माणिक्य, पन्ना और हीरों सजाए गए हैं. मुकुट के ठीक बीच में भगवान सूर्य अंकित हैं. मुकुट के दायीं ओर मोतियों की लड़ियाँ पिरोई गयी हैं.
कुण्डलः मुकुट या किरीट के अनुसार ही और उसी डिजाईन के क्रम में भगवान के कर्ण-आभूषण बनाये गये हैं, जिनमें मयूर आकृतियां बनी हैं और यह भी सोने, हीरे, माणिक्य और पन्ने से सुशोभित है.
कण्ठाः गले में अर्द्धचन्द्राकार रत्नों से जड़ित कण्ठा सुशोभित है, जिसमें मांगलिक पुष्प बने हैं और मध्य में सूर्य देव बने हैं. सोने से बना हुआ यह कण्ठा हीरे, माणिक्य और पन्नों से जड़ा है. कण्ठे के नीचे पन्ने की लड़ियां लगाई गयी हैं.
कौस्तुभमणिः भगवान के हृदय में कौस्तुभमणि धारण कराया गया है, जिसे एक बड़े माणिक्य और हीरों से सजाया गया है. यह शास्त्र विधान है कि भगवान विष्णु तथा उनके अवतार हृदय में कौस्तुभमणि धारण करते हैं. इसलिए इसे धारण कराया गया है.
वैजयन्ती या विजयमालः यह भगवान को पहनाया जाने वाला तीसरा और सबसे लम्बा और स्वर्ण से निर्मित हार है. जिसमें कहीं-कहीं माणिक्य लगाये गये हैं, इसे विजय के प्रतीक के रूप में पहनाया जाता है, जिसमें वैष्णव परम्परा के समस्त मंगल-चिन्ह सुदर्शन चक्र, पद्मपुष्प, शंख और मंगल-कलश दर्शाया गया है. इसमें पांच प्रकार के देवताओं को प्रिय पुष्पों का भी अलंकरण किया गया है, जो क्रमशः कमल, चम्पा, पारिजात, कुन्द और तुलसी हैं.
कमर में कांची या करधनी: भगवान के कमर में करधनी धारण करायी गयी है, जिसे रत्नजडित बनाया गया है. स्वर्ण पर निर्मित इसमें प्राकृतिक सुषमा का अंकन है, और हीरे, माणिक्य, मोतियों और पन्ने यह अलंकृत है. पवित्रता का बोध कराने वाली छोटी-छोटी पाँच घण्टियों को भी इसमें लगाया गया है. इन घण्टियों से मोती, माणिक्य और पन्ने की लड़ियों भी लटक रही हैं.
भुजबन्ध या अंगदः भगवान की दोनों भुजाओं में स्वर्ण और रत्नों से जड़ित मुजबन्ध पहनाये गये हैं.
कंकण/कंगनः दोनों ही हाथों में रत्नजडित सुन्दर कंगन पहनाये गये हैं.
मुद्रिकाः बाएं और दाएं दोनों हाथों की मुद्रिकाओं में रत्नजड़ित मुद्रिकाएं सुशोभित हैं, जिनमें से मोतियां लटक रही हैं.
पैरों में छड़ा और पैजनियां: पैरों में छड़ा पहनाये गये हैं. साथ ही स्वर्ण की पैजनियाँ पहनायी गयी हैं.
बाएं हाथ में स्वर्ण धनुष और गले में वनमाला : भगवान के बाएं हाथ में स्वर्ण का धनुष है, जिनमें मोती, माणिक्य और पन्ने की लटकने लगी हैं, इसी तरह दाहिने हाथ में स्वर्ण का बाण धारण कराया गया है. भगवान के गले में रंग-बिरंगे फूलों की आकृतियों वाली वनमाला धारण कराई गई है, जिसका निर्माण हस्तशिल्प के लिए समर्पित शिल्पमंजरी संस्था ने किया है.भगवान के मस्तक पर उनके पारम्परिक मंगल-तिलक को हीरे और माणिक्य से रचा गया है. भगवान के चरणों के नीचे जो कमल सुसज्जित है, उसके नीचे एक स्वर्णमाला सजाई गई है.