Reservation :आरक्षण बना सियासी मुद्दा, आइए 1जानते हैं मुसलमानों को कहां, कितना और कैसे मिलता है आरक्षण, क्या कहता है संविधान?

Reservation :आरक्षण बना सियासी मुद्दा, आइए 1जानते हैं मुसलमानों को कहां, कितना और कैसे मिलता है आरक्षण, क्या कहता है संविधान?

Reservation : लोकसभा चुनाव के गहमागहमी के बीच आरक्षण के मुद्दे पर सियासी घमासान मचा हुआ है. पक्ष और विपक्ष दोनों इस मुद्दे को लेकर एक-दूसरे पर तंज कसने का एक भी मौका नहीं छोड़ रहे हैं.

भाजपा का कहना है कि कांग्रेस चाहती है कि ओबीसी, एससी, एसटी के आरक्षण का हिस्सा मुस्लिम समुदाय को दी जाए  वहीं, कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा चुनाव में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ निशाना साध रही है.

इसी बीच कल हुए लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण के बीच  राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष लालू प्रसाद ने मंगलवार को मुसलमानों को आरक्षण का लाभ दिए जाने की वकालत करते हुए आरोप लगाया कि केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) संविधान और लोकतंत्र को खत्म करके आरक्षण समाप्त करना चाहती है.  उन्होंने कहा क‍ि भाजपा संविधान और लोकतंत्र को खत्म करना चाहती है. यह बात जनता के जेहन में आ चुकी है.

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ये पहली बार नहीं है जब मुस्लिम आरक्षण चुनावी मुद्दा बना है. पिछले साल जब कर्नाटक और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव हुए थे, तब भी ये मुद्दा बना था.

ऐसे में जानते हैं कि मुस्लिम आरक्षण की संविधान में क्या व्यवस्था है? देश में मुस्लिम समुदाय को आरक्षण कैसे दिया जाता है? मुस्लिम आरक्षण की क्या स्थिति है? आइए जानते हैं.

Reservation : कब से मिल रहा है आरक्षण?

ओबीसी समुदाय के शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन का अध्ययन करने के लिए बी. पी मंडल के नेतृत्व में मंडल आयोग का गठन किया गया था. मंडल आयोग की स्थापना 1 जनवरी 1979 को हुई थी जब मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री थे.

1980 में इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की. इसने ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की, लेकिन, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकारों ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की.

हालांकि, 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह ने मंडल आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने का निर्णय लिया. इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई लेकिन, सर्वोच्च अदालत ने कुछ बदलावों के साथ इसकी सिफ़ारिशों को हरी झंडी दिखा दी. 3,743 जातियों को मिलाकर उन्हें ओबीसी में 27 फीसदी आरक्षण दिया गया. उसी मंडल आयोग ने मुस्लिम समुदाय की कुछ जातियों को भी ओबीसी में शामिल किया.http://क्या कहता है संविधान?

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बाद में जब 1994 में शरद पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने मंडल आयोग की सिफ़ारिशें महाराष्ट्र में लागू की. महाराष्ट्र में ओबीसी को 19 फीसदी आरक्षण दिया गया. इसमें भी महाराष्ट्र में मुस्लिम समुदाय की कुछ जातियों को ओबीसी से आरक्षण मिला हुआ है.

Reservation : देश में मुस्लिम आरक्षण की क्या स्थिति है?

केंद्रीय पिछड़ा वर्ग सूची में कुछ मुस्लिम जातियों को उन राज्यों में आरक्षण मिलता है, जहां मंडल आयोग लागू है.

इसमें पीआईबी में दी गई जानकारी के मुताबिक़, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु के कुछ मुस्लिम समुदाय की कुछ जातियों, उत्तर प्रदेश के तेली और कायस्थ मुसलमानों, साथ ही बिहार, केरल, असम के मुसलमानों को ओबीसी के तहत आरक्षण दिया जा रहा है.

केरल में शिक्षा में 8 फीसदी और नौकरियों में 10 फीसदी सीटें मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षित हैं.

तमिलनाडु में भी 90 फीसदी मुस्लिम समुदाय आरक्षण की श्रेणी में आता है, जबकि बिहार में मुस्लिम समुदाय को पिछड़ा और अति पिछड़ा के रूप में वर्गीकृत करके आरक्षण दिया गया था.

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आंध्र प्रदेश में मुस्लिम समुदाय को 5 फीसदी आरक्षण दिया गया. हालांकि, यह आरक्षण रद्द कर दिया गया क्योंकि आरक्षण पिछड़ा वर्ग आयोग से परामर्श किए बिना दिया गया था.

2005 में मुसलमानों को पांच फीसदी आरक्षण देने का कानून भी दूसरी बार पारित हुआ. लेकिन, आंध्र प्रदेश में आरक्षण की सीमा 51 फीसदी को पार कर रही थी. इसलिए यह आरक्षण कोर्ट में टिक नहीं सका.

शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर मुस्लिम आरक्षण का कोटा घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया ताकि 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा पार न हो. इसके बाद भी मामला कोर्ट में चला गया. फिलहाल सुनवाई जारी है.

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Reservation : क्या कहता है संविधान?

मुस्लिम समुदाय की ओर से लगातार आरक्षण की मांग होती रही है. क्या इस समुदाय को संविधान के अनुसार आरक्षण दिया जा सकता है? भारतीय संविधान समानता की बात करता है. इसमें धर्म के आधार पर आरक्षण का प्रावधान नहीं है.

संविधान कहता है कि अगर कोई वर्ग पिछड़ा है तो उसे मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण दिया जा सकता है.

1992 में इंदिरा साहनी बनाम केंद्र सरकार मामले में फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि अगर कोई सामाजिक समूह पिछड़ा है तो उसे पिछड़ा वर्ग माना जाएगा, फिर चाहे उसकी धार्मिक पहचान कुछ भी हो.

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अभी मुसलमानों को जो आरक्षण दिया जाता है, वो कोटे के अंदर कोटा सिस्टम के जरिए मिलता है. मुसलमानों की जो जातियां एससी, एसटी या फिर ओबीसी में शामिल हैं,

उन्हें इस कैटेगरी के अंदर ही आरक्षण मिलता है. मुस्लिमों की जातियों के लिए अलग से कोई कोटा नहीं है.

मसलन, केरल में मुस्लिमों को हायर एजुकेशन में 8% आरक्षण मिलता है, उन्हें ये ओबीसी के ही 30% कोटे से दिया जाता है.

Reservation : इन राज्‍यों में मिलता है मुस्लिमों को आरक्षण

धर्म के आधार पर आरक्षण देने का सबसे पहला मामला केरल से आया. 1956 में केरल के पुनर्गठन के बाद वामपंथी सरकार ने आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाकर 50 कर दिया गया, जिसमें ओबीसी के लिए आरक्षण 40% शामिल था. सरकार ने ओबीसी के भीतर एक उप-कोटा पेश किया जिसमें मुस्लिम हिस्सेदारी 10% थी.

वर्तमान में केरल की सरकारी नौकरियों में मुस्लिम हिस्सेदारी बढ़कर 12% और व्यावसायिक शैक्षणिक संस्थानों में 8% हो गई है. उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बावजूद केरल में सभी मुसलमानों को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत किया गया है. इसके आधार पर उन्हें ओबीसी कैटेगरी में शामिल किया गया है.

तमिलनाडु में धर्म के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की गई है. तमिलनाडु सरकार ने मुस्लिमों और ईसाइयों में प्रत्येक के लिए 3.5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की है. इस तरह ओबीसी आरक्षण को 30 प्रतिशत से बढ़ाकर 23 प्रतिशत कर दिया गया है.

मुस्लिमों या ईसाइयों से संबंधित अन्य पिछड़े वर्ग को इससे हटा दिया गया था. इसके पीछे सरकार की दलील थी कि यह उप-कोटा धार्मिक समुदायों के पिछड़ेपन पर आधारित है न कि खुद धर्मों के आधार पर. दरअसल, द्रमुक सरकार ने इसे आगे बढ़ाया.

साल 2011 में पश्चिम बंगाल की सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुस्लिमों को अधिक से अधिक फायदा पहुँचाने के लिए मुस्लिमों की कई जातियों को ओबीसी की लिस्ट में जोड़ा. इसका परिणाम यह हुआ कि राज्य की नौकरी या अन्य सरकारी योजनाओं में आरक्षण का 90% से अधिक फायदा मुस्लिमों को मिला है. इसको लेकर ओबीसी आयोग ने सरकार पर सवाल भी उठाए.

इसी तरह आंध्र प्रदेश में सीएम वाईएस राजशेखर रेड्डी की अगुवाई में कॉन्ग्रेस सरकार ने साल 2004 में मुस्लिमों की कई जातियों को ओबीसी में शामिल कर लिया और इन्हें 5 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की. दो माह बाद आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी. इसके बाद जून 2005 में कॉन्ग्रेस ने अध्यादेश लाकर 5 प्रतिशत कोटे का ऐलान कर दिया.

तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (BRS) की सरकार में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने राज्य के मुस्लिमों को OBC श्रेणी में 4 प्रतिशत आरक्षण दिया था. वे इस आरक्षण को बढ़ाकर 12 प्रतिशत करना चाहते थे. इसके लिए वो तेलंगाना की विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पास करा चुके हैं, लेकिन केन्द्र सरकार ने प्रस्ताव को अपनी मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया.

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