Sita Navami (16 मई 2024) : 16 मई 2024 को है सीता नवमी, मां सीता को समर्पित है ये दिन, इस दिन जरुर करें मां जानकी की पूजा
Sita Navami (16 मई 2024) : वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को सीता नवमी मनाई जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि की शुरुआत 16 मई को सुबह 06 बजकर 22 मिनट से होगी और इसका समापन अगले दिन यानी 17 मई को सुबह 08 बजकर 48 मिनट पर होगा. ऐसे में सीता नवमी का पर्व 16 मई को मनाया जाएगा.
मान्यता है कि सीता नवमी पर माता सीता की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है. महिलाएं माता सीता को सहनशीलता, पतिव्रता और पवित्रता के प्रतीक के रूप में देखते हुए और उन्हें आदर्श मानते हुए इस दिन पति की दीर्घायु के लिए व्रत भी करती हैं.
इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से भी विशेष लाभ की प्राप्ति होती है. कहते हैं कि इस दिन माता सीता व भगवान् राम की पूजा करने से 16 महान दानों का फल, पृथ्वी दान का फल और समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिलता है. माँ सीता की पूजा में सुहाग और शृंगार का सामान चढ़ाया जाता है. पूजा करते समय ‘ॐ श्रीसीताये नमः’ मंत्र का जाप भी किया जाता है.
Sita Navami (16 मई 2024) : क्या है महत्व
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि मां सीता का समर्पित है. इसे सीता नवमी के नाम से जाना जाता है. इस दिन मां सीता का प्राकट्य हुआ था. सीता नवमी राम नवमी के ठीक एक माह बाद मनाई जाती है. मिथिला के राजा जनक और माता सुनयना की ज्येष्ठ पुत्री मां सीता को जानकी और लक्ष्मी स्वरूपा भी कहा जाता है. मान्यता है इस दिन मां सीता की विधि विधान से पूजा करने पर आर्थिक तंगी दूर होती है और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
Sita Navami (16 मई 2024) : ऐसे हुआ मां सीता का जन्म
जनकपुर के राजा जनक के यहां कोई संतान नहीं थी. ऋषि मुनियों से विचार-विमर्श कर उन्होंने संतान प्राप्ति यज्ञ का अनुष्ठान कराया. इस यज्ञ के संपूर्ण होने पर यज्ञ का आयोजन करानेवाले व्यक्ति को भूमि जोतनी होती है. ऐसे में यज्ञ होने के बाद जब राजा जनक ने हल (खेती के दौरान प्रयोग किया जानेवाला एक पारंपरिक यंत्र) से भूमि जोतनी शुरू की. खेत की जुताई के दौरान एक जगह आकर हल अटक गया. काफी कोशिश के बाद भी जब हल आगे नहीं बढ़ा तो उस जगह पर फावड़े (जमीन खोदने के लिए प्रयोग होनेवाला औजार) से खोदा गया.
थोड़ी-सी मिट्टी खोदने के बाद ही जमीन में से एक घड़ा निकला. उस घड़े को खोलकर देखा गया तो उसमें एक नवजात कन्या थी. यह देखकर सभी हैरत में रह गए कि जमीन के अंदर मटके में यह कन्या जीवित कैसे है! लेकिन राजा जनक की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह उस बच्ची को अपने महल ले गए और बच्ची का नाम सीता रखा.
Sita Navami (16 मई 2024) : कैसे पड़ा सीता नाम
इनका नाम सीता रखने का कारण यह है कि हल के आगे की तरफ जो नुकीला भाग होता है, उसे सित कहते हैं. वह सित मटके से टकराने के कारण ही राजा जनक को वह बच्ची मिली, इसलिए उन्होंने इसका नाम सीता रखा.
राजा जनक सीता को बहुत दुलार करते थे इसलिए उन्हें जनक दुलारी और जानकी नाम से भी पुकारा जाने लगा. जिस जगह पर देवी सीता प्रकट हुईं थी, उस स्थान को सीतामढ़ी नाम से जाना जाता है. आज भी सीतामढ़ी में देवी सीता का जन्मोत्सव बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है.
Sita Navami (16 मई 2024) : सीता नवमी पूजा विधि
सीता नवमी का दिन रामनवमी की तिथि की तरह ही बेहद शुभ माना जाता है. इस दिन पूरे विधि-विधान से प्रभु राम और माता सीता की पूजा करनी चाहिए.
सीता नवमी के दिन शुभ मुहूर्त में माता सीता को सोलह श्रृंगार की सामग्री अर्पित करना चाहिए. ऐसी मान्यता है कि इस दिन ऐसा करने से सुहाग पर आ रहे सारे संकट का निवारण होता है. ये सुहाग की सामग्री सुहागिनों को दान करें. मनपसंद जीवनसाथी की कामना के लिए इस दिन रामचरित्र मानस के इस मंत्र का जाप करें – जय जय गिरिवर राज किशोरी जय महेश मुख चंद चकोरी
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Sita Navami (16 मई 2024) : ऐसे करें पूजा
- सीता नवमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें.
- फिर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर प्रभु राम और सीता माता की प्रतिमा स्थापित करें.
- इसके बाद पंचामृत, गंगाजल व पवित्र जल से राम दरबार का अभिषेक करें.
- उसके बाद माता सीता को कुमकुम और गोपी चंदन का तिलक लगाएं.
- फिर देसी घी का दीपक जलाएं और पीले फूलों की माला चढ़ाएं.
- पूजा के दौरान माता सीता को श्रृंगार का सामान जरूर चढ़ाएं.
- इसके अलावा, उन्हें मखाने की खीर, फल, मिठाई का भोग लगाएं.
- साथ ही माता सीता को इस दिन सफेद कपड़े और फूल जरूर अर्पित करने चाहिए.
- फिर धूप,दीप,अगरबत्ती से उनकी पूजा करनी चाहिए.
- सीता जयंती के शुभ दिन रामायण का पाठ बेहद शुभ माना जाता है.