Varuthini Ekadashi : जानें क्यों वैशाख मास की वरूथिनी एकादशी (2024) का व्रत होता है बेहद खास
4 मई 2024 शनिवार को हैं वरूथिनी एकादशी व्रत
Varuthini Ekadashi : वैसे तो हर माह में एकादशी तिथि होती है और सबका अपना-अपना महत्व भी है, लेकिन भगवान विष्णु जी के प्रिय वैशाख महीने की वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान के वराह अवतार का पूजन करने वालों की सभी कामनाएं पूरी होने लगती है। इस दिन दान पुण्य करने से वाले लोगों को भगवान विष्णु के परम धाम की प्राप्ति होती है।
Varuthini Ekadashi : वरुथिनी एकादशी है खास
सभी एकादशी तिथियों में वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी बेहद खास मानी जाती है, जिसे वरुथिनी एकादशी 2024 के नाम से जाना जाता है। वरूथिनी एकादशी 2024 के व्रत से समस्त पाप, ताप नष्ट होने के साथ सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वरूथिनी एकादशी का व्रत अथाह पुण्य फल प्रदान करने वाला माना जाता है।
Varuthini Ekadashi : वरुथिनी एकादशी व्रत कथा
वरुथिनी एकादशी व्रत का महत्व धार्मिक पौराणिक ग्रंथों में विस्तार से मिलता है। वरुथिनी एकादशी के बारे में कथा इस प्रकार है- बहुत समय पहले की बात है, माँ नर्मदा नदी के किनारे एक राज्य था जिसका राजा मांधाता था। राजा बहुत ही पुण्यात्मा थे, अपनी दानशीलता के लिये वे दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे, वे तपस्वी भी और भगवान विष्णु के अनन्य उपासक थे।
एक बार राजा जंगल में तपस्या के लिये चले गये और एक विशाल वृक्ष के नीचे अपना आसन लगाकर तपस्या आरंभ कर दी वे अभी तपस्या में ही लीन थे कि एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया वह उनके पैर को चबाने लगा। लेकिन राजा मान्धाता तपस्या में एकाग्रचित ही लीन रहे, भालू उन्हें घसीट कर ले जाने लगा तो ऐसे में राजा को घबराहट होने लगी, लेकिन उन्होंने तपस्वी धर्म का पालन करते हुए क्रोध नहीं किया और भगवान विष्णु से ही इस संकट से उबारने की गुहार लगाई।
भगवान अपने भक्तों पर संकट कैसे देख सकते हैं, विष्णु जी प्रकट हुए और भालू को अपने सुदर्शन चक्र से मार गिराया, लेकिन तब तक भालू ने राजा के पैर को लगभग पूरा चबा लिया था। राजा को बहुत पीड़ा हो रही थी, श्री भगवान ने राजा से कहा हे राजन विचलित होने की आवश्यकता नहीं है।http://पुराण में भी है एकादशी का उल्लेख
Varuthini Ekadashi : पापों से मिलती है मुक्ति
तुम वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की वरुथिनी एकादशी तिथि जो मेरे वराह रूप का प्रतिक है, तुम इस दिन मेरे वराह रूप की पूजा करना एवं व्रत रखना । मेरी कृपा से तुम पुन: संपूर्ण अंगों वाले हष्ट-पुष्ट हो जाओगे। भालू ने जो भी तुम्हारे साथ किया यह तुम्हारे पूर्वजन्म के पाप कर्मों का फल है। इस एकादशी के व्रत से तुम्हें सभी पापों से भी मुक्ति मिल जाएगी।
श्रीभगवान की आज्ञा मानकर राजा मांधाता ने वरूथिनी एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा के साथ किया। परिणाम स्वरूप भालू ने राजा का जो पैर खाया था वह पैर पूरी तरह ठीक हो गया।
व्रत करने के पुण्यफल व भगवान वराह की कृपा से जैसे राजा को नवजीवन मिल गया हो। वह फिर से हष्ट पुष्ट होकर अधिक श्रद्धाभाव से भगवान की साधना में लीन रहने लगा। वरूथिनी एकादशी का व्रत करने से कोई भी उक्त राजा की तरह भगवान की कृपा का अधिकारी बन सकता है।
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Varuthini Ekadashi : एकादशी व्रत का क्या है महत्व
एकादशी संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है, जिसका अर्थ होता है ग्यारह. पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी के नाम से जानते हैं. हर माह 2 एकादशी पड़ती है. इस तरह पूरे साल भर में 24 एकादशी का व्रत किया जाता है. इन सभी एकादशियों को हर महीने में अलग-अलग नाम से जाना जाता है. अलग-अलग पक्ष में आने वाली एकादशी का अपना अलग-अलग महत्व होता है.
Varuthini Ekadashi : पुराण में भी है एकादशी का उल्लेख
शास्त्र और पुराणों के अनुसार, एकादशी को हरि दिन और हरि वासर के नाम से भी जानते हैं. इस व्रत को वैष्णव और गैर वैष्णव दोनों ही समुदाय के लोग रखते हैं. एकादशी के व्रत को हवन यज्ञ और वैदिक कर्मकांड से भी अधिक फलदायी माना गया है. इस व्रत की एक मान्यता यह भी है कि इससे पूर्वज या पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है. स्कंद पुराण में एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताया गया है.