Vat Savitri 2024: क्‍या है वट सावित्री का महत्‍व? क्यों की जाती है बरगद के पेड़ की पूजा?

Vat Savitri 2024: क्‍या है वट सावित्री का महत्‍व? क्यों की जाती है बरगद के पेड़ की पूजा?

Vat Savitri 2024:  ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन सुहागिन महिलाएं वट सावित्री का व्रत रखती हैं. इस व्रत को रखने से पति दीर्घायु होते हैं. वट सावित्री व्रत के दिन बरगद के पेड़ की पूजा का विधान है. इस दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर निर्जला उपवास रख कर विधिपूर्वक वट यानी बरगद की पूजा करती हैं.

वट सावित्री पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अराधना की जाती है.इस साल वट सावित्री व्रत के दिन रोहिणी नक्षत्र और धृति योग बन रहा है. जो कि एक शुभ संयोग है.

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, यमराज ने माता सावित्री के पति सत्यवान के प्राणों को वट वृक्ष के नीचे ही लौटाया था और उन्हें 100 पुत्रों का वरदान दिया था। कहते हैं उसी समय से वट सावित्री व्रत और वट वृक्ष की पूजा की परंपरा शुरू हुई। मान्यता है कि वट सावित्री व्रत के दिन दिन बरगद पेड़ की पूजा करने से यमराज देवता के साथ त्रिदेवों की भी कृपा प्राप्त होती है।

वट सावित्री के दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर बरगद के पेड़ की विधिवत पूजा-अर्चना करती हैं. प्राचीन कथाओं की मानें तो इस दिन माता सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण को यमराज से वापस ले आई थीं. इसलिए इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और सौभाग्य के लिए व्रत रखती हैं और बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं.

Vat Savitri 2024: सावित्री व्रत कथा

भद्र देश के एक राजा थे, जिनका नाम अश्वपति था। भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी. उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियां दीं. अठारह वर्षों तक वह ऐसा करते रहे. इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी. सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने के कारण से कन्या का नाम सावित्री रखा गया. कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान हुई. योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा.

सावित्री तपोवन में भटकने लगी. वहां साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था. उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया. ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि हे राजन! यह क्या कर रहे हैं आप? सत्यवान गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, पर उसकी आयु बहुत छोटी है, वह अल्पायु हैं. एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी.

ऋषिराज नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति घोर चिंता में डूब गए. सावित्री ने उनसे कारण पूछा, तो राजा ने कहा, पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं। तुम्हे किसी और को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए.

इस पर सावित्री ने कहा कि पिताजी, आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है. सावित्री हठ करने लगीं और बोलीं मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी। राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया.

सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा करने लगी. समय बीतता चला गया. नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था. वह दिन जैसे-जैसे करीब आने लगा, सावित्री अधीर होने लगीं. उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया.

नारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया. हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल चले गये साथ में सावित्री भी गईं. जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गये. तभी उसके सिर में तेज दर्द होने लगा, दर्द से व्याकुल सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गये. सावित्री अपना भविष्य समझ गईं.

सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगीं। तभी वहां यमराज आते दिखे। यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे. सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं. यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यही विधि का विधान है. लेकिन सावित्री नहीं मानी.

सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो. तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो. सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें. यमराज ने कहा ऐसा ही होगा. जाओ अब लौट जाओ. लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं।

यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ. सावित्री ने कहा भगवन मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है। पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा. सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें. यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ, लेकिन सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं.

यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा. इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा. यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया.सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है. यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े. यमराज अंतध्यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था.

सत्यवान जीवंत हो गया और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े. दोनों जब घर पहुंचे तो देखा कि माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है. इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे.

Vat Savitri 2024: शुभ मुहूर्त और तिथि

ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि का आरंभ  5 जून 2024 को शाम 7 बजकर 54 मिनट से होगा और इसका समापन  6 जून 2024 को शाम 6 बजकर 7 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, वट सावित्रि का व्रत 6 जून को रखा जाएगा। सुहागिन महिलाएं वट सावित्रि के पूजा सुबह 11 बजकर 52 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट के बीच कर सकती हैं।

Vat Savitri 2024: क्यों होती है बरगद की पूजा?

धार्मिक मान्यता के अनुसार, बरगद के पेड़ में त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का वास होता है. ऐसे में इस पेड़ की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. क्योंकि बरगद के पेड़ की आयु बहुत लंबी होती है. इसलिए इसे अक्षय वृक्ष भी कहा जाता है. ऐसे में विवाहित महिलाएं द्वारा इस वृक्ष की पूजा करती है और अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं.

इसके अलावा दांपत्य जीवन में चल रही परेशानियां भी दूर हो जाती हैं. इस दिन व्रत रखने का विधान होता है. पूजा के दौरान महिलाएं हाथ में रक्षा सूत्र लेकर, बरगद पेड़ की परिक्रमा करती हैं और विधि-विधान से पूजा करती हैं. माना जाता है कि इस पूजा से आर्थिक परेशानियां भी दूर होती हैं और जीवन में आने वाले कष्टों से छुटकारा मिलता है.

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तुलसीदास ने अपनी रचनाओं में वट वृक्ष को तीर्थराज का छत्र कहा है.

ये वृक्ष न केवल हिंदू मान्यताओं में पवित्र है, बल्कि ये दीर्घायु वाला भी है. इसलिए लंबी आयु शक्ति और धार्मिक महत्व को ध्यान में रखकर इस वृक्ष की पूजा की जाती है.

Vat Savitri 2024: वट वृक्ष में क्यों लपेटते हैं कच्चा सूत

सुहागिन महिलाएं वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष पर 7 बार सूत लपेटती हैं. वट वृक्ष पर सूत लपेटने का अर्थ है कि पति से उनका संबंध सात जन्मों तक बना रहे. इसके अलावा वट वृक्ष में अनेक औषधीय तत्व मौजूद होते हैं. वट वृक्ष का पर्व वर्षा ऋतु आरंभ होने के पहले मनाया जाता है. वट वृक्ष की कली में मौजूद औषधीय तत्व सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं.

 

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